- गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूं दर दर खड़ा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना पड़ा
जब तक न मंजिल पा सकूँ,
तब तक मुझे न विराम है,
चलना हमारा काम है।
‘चलना हमारा काम है’ कविता में कवि शिव मंगल सिंह ने जीवनपथ पर लगातार चलते रहने के महत्व को दर्शाते हुए कहा है कि मेरे पैरों में तेज चलने की शक्ति होने पर भी भला मैं क्यों जगह-जगह खड़ा रहूँ? आज मेरे सामने इतना बड़ा रास्ता है तो जब तक मंजिल पर नहीं पहुँच जाऊँगा तब तक विश्राम करने के लिए रूकूँगा नहीं अर्थात लक्ष्य प्राप्ति तक लगातार बिना हार माने प्रयास करते रहना आवश्यक है। चलते हुए आगे बढ़ना ही हमारा काम है।
2. कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया
कुछ बोझ अपना बँट गया
अच्छा हुआ, तुम मिल गई
कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूँ,
राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है।
जीवन रूपी राह में चलते समय हमें कुछ अपनी बात कहनी चाहिए और कुछ दूसरों की सुननी चाहिए। इस तरह मन की बात कहने, सुनने से मन का बोझ कम हो जाता है और आगे बढ़ने की शक्ति मिलती है। किसी साथी के मिल जाने पर प्रसन्नता होती है और साथ चलने से लम्बा रास्ता भी आसानी से पार हो जाता है जबकि एकाकी मनुष्य को रास्ता अधिक लम्बा और कठिन महसूस होता है। राह में चलने वाले का एक ही परिचय होता है राही और चलते रहना ही उसका कर्त्तव्य होता है इसके अतिरिक्त उसका कोई और परिचय नहीं होता।
3. जीवन अपूर्ण लिए हुए
पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा,
हँसता कभी रोता कभी
गति-मति न हो अवरूद्ध,
इसका ध्यान आठो याम है,
चलना हमारा काम है।
कवि कहता है कि मनुष्य का जीवन अपूर्ण है क्योंकि कभी हमें सब कुछ प्राप्त नहीं होता। कभी कुछ प्राप्त होता है तो कभी कुछ खो जाता है, कभी हमारा जीवन आशाओं से तो कभी निराशा से घिर जाता है, कभी हँसता है तो कभी रोता है। जीवन में उतार-चढ़ाव चलते ही रहते हैं। लेकिन हमें कभी भी निराशाओं से ग्रसित होकर अपनी गति को अवरुद्ध और विवेक को क्षीण नहीं होने देना चाहिए। इस बात का सदैव ध्यान रखते हुए जीवनपथ पर चलते रहना चाहिए।
4. इस विशद विश्व-प्रवाह में
किसको नहीं बहना पडा
सुख-दुख हमारी ही तरह,
किसको नहीं सहना पडा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ,
मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है।
इस विशाल संसार के प्रवाह में ऐसा कोई नहीं जिसे बहना न पड़ा हो। सभी के जीवन में सुख-दुख आते जाते रहते हैं। फिर स्वयं पर आए दुखों से घबराकर ईश्वर को इसके लिए दोषी मानना बेकार है। अतः हमें चलते रहने के कर्म से पीछे नहीं हटना चाहिए।
5. मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ
रोडा अटकता ही रहा
निराशा क्यों मुझे?
जीवन इसी का नाम है,
चलना हमारा काम है।
कवि कहता है कि अपने अपूर्ण जीवन को पूर्ण करने के लिए मैं सदैव यहाँ से वहाँ भटकता रहा। मेरी राह में अनेक कठिनाइयाँ भी आती रहीं लेकिन इन कठिनाइयों से निराश होकर रुक जाना उचित नहीं क्योंकि जीवन का अर्थ ही यही है कि जीवन में आने वाले सुख और दुख दोनों को समान भाव से स्वीकार करते हुए आगे बढ़ते रहा जाए। अतः कठिनाइयों का कुशलता से सामना करते हुए चलते रहना चाहिए।
6. कुछ साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए l
पर गति न जीवन की रूकी
जो गिर गए सो गिर गए
चलता रहे हर दम,उसी की सफलता अभिराम है, चलना हमारा काम है।
जीवनपथ की कठिन डगर पर चलते हुए कुछ साथ चलते रहे और कुछ साथी बीच में से ही लौट गए किन्तु क्या उनकी इस प्रवृत्ति से मेरे जीवन की गति रुक गई? साथियों के छूटने का मुझे गम नहीं। जो लोग निराशा से हार मानकर गिर जाते हैं वे गिर गए लेकिन जो दृढ़ता के साथ कठिनाइयों का सामना करते हुए हर वक्त चलते रहे उन्हें ही जीवन में सफलता की प्राप्ति होती है।