‘क्या निराष हुआ जाए ?’ लेख के माध्यम से हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने पाठकों को सकारात्मक सोच अपनाने एवं अपने आस-पास की और समाचार पत्रों की घटनाओं को पढ़कर निराष न होने की सीख दी है। आज जहाँ लोग ठगी, डकैती, चोरी, तस्करी और भ्रष्टाचार की घटनाओं से दुःखी हैं, और बेईमान, झूठे और मक्कार लोगों को फलते-फूलते, ईमानदार एवं मेहनती लोगों को दुःख भोगते हुए देख रहे हैं, वहीं हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने अपने जीवन की दो आप बीती घटनाओं के द्वारा यह स्पष्ट करना चाहा है कि आज भी हमें निराष होने की जरूरत नहीं है क्योंकि इतनी उथल पुथल के बाद भी ईमानदारी और मनुष्यता का नाष नहीं हुआ है। मानवता का बीज आज भी लोगों के मन में देखा जा सकता है। एक बार लेखक ने रेलवे स्टेषन पर टिकट लेते हुए गलती से दस की बजाए सौ रूपए का नोट दिया और जल्दी-जल्दी गाड़ी में आकर बैठ गए। थोड़ी देर में टिकट बाबू उन दिनों के सैकिंड क्लास के डिब्बे में हर आदमी का चेहरा पहचानता हुआ उपस्थित हुआ। उसने लेखक को पहचान कर बड़ी विनम्रता के साथ उनके हाथ में नब्बे रूपए दिए और बोला – ‘‘यह बहुत बड़ी गलती हो गई थी। आपने भी नहीं देखा, मेंने भी नहीं देखा।’’ पैसे लौटाने के बाद उसके चेहरे पर विचित्र संतोष की गरिमा देख लेखक चकित हो गए। वे सोचने लगे – ‘‘कैसे कहूँ , कि दुनिया से सच्चाई और ईमानदारी लुप्त हो गई है?’ दूसरी घटना तब की है जब लेखक अपनी पत्नी और तीन बच्चो के साथ बस द्वारा यात्रा कर रहे थे। बस में कुछ खराबी की वजह से वह गंतव्य से कोई आठ किलोमीटर पहले ही एक निर्जन सुनसान स्थान पर रात के करीब दस बजे रूक गई। बस के सभी यात्री घबरा गए। उन्हे ं सन्देह होने लगा कि ये ड्राइवर, कन्डक्टर और डाकुओं की मिली भगत है। अवष्य ही उन्हें लूटने की योजना है। किसी ने कहा – ‘‘यहाँ डकैती होती है, दो दिन पहले इस तरह एक बस को लूटा गया था।’ लेखक अपने परिवार के साथ अकेले थे। बच्चे पानी माँग रहे थे पर पानी का कहीं ठिकाना न था। कंडक्टर भी साइकिल लेकर कहीं चला गया था। सब मिलकर ड्राइवर को घेर कर मारने की योजना बना रहे थे। ड्राइवर की कातर मुद्रा देखकर लेखक ने उन्हें किसी तरह रोका। अन्य यात्रियों को सन्देह था कि ड्राइवर उन्हें धोखा दे रहा है। ‘‘कंडक्टर को पहले ही डाकुओं के यहाँ भेज दिया है।’’ करीब डेढ़-दो घंटे बाद कंडक्टर अपने साथ एक खाली बस लेकर आया और साथ ही बच्चों के लिए दूध और पानी भी लाया और बोला – ‘‘पंडित जी, बच्चों का रोना मुझसे देखा नहीं गया।’’ उन दोनों घटनाओं के माध्यम से लेखक हमें बताना चाहते हैं कि आज भी हमारी चेतना मरी नहीं है, इन्सानियत समाप्त नहीं हुई है, आज भी लोगों में दया-माया है। भारत सदा से महान था, महान है और महान रहेगा।